क्या है प्री-एक्लेमप्सिया? जानिए इसके लक्षण और उपचार

प्री-एक्लेमप्सिया क्या है?
प्री-एक्लेम्पसिया एक उच्च रक्तचाप विकार है, जो गर्भावस्था के 20वें सप्ताह के बाद एक गर्भवती महिला को हो सकता है. माना जाता है कि प्री-एक्लेमप्सिया तब होता है जब अपरा (प्लेसेंटा) सही ढंग से काम नहीं करती है. यदि आपको जरुरी उपचार न मिले तो यह आप और आपके शिशु की सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है.
प्री-एक्लेमप्सिया अपरा (प्लेसेंटा) से रक्त के प्रवाह को कम कर देता है. इसका मतलब है कि आपके गर्भस्थ शिशु को पर्याप्त ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिल रहे होंगे, जिससे उसका विकास बाधित हो सकता है. प्री-एक्लेमप्सिया आमतौर पर गर्भावस्था का आधा चरण पार कर लेने के बाद या फिर शिशु के जन्म के कुछ ही समय बाद होता है. गर्भावस्था के 20 सप्ताह बाद इसके विकसित होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. प्री-एक्लेम्पसिया गर्भवती महिलाओं में होनेवाली बीमारी है जिसमें दुनिया भर में 15 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं उच्च रक्तचाप का शिकार होती हैं.

प्री-एक्लेमप्सिया के क्या लक्षण हैं?
बहुत सी महिलाएं जिन्हें प्री-एक्लेमप्सिया होता है, उन्हें इसके बारे में पता ही नहीं चलता. यह नियमित डॉक्टरी जांच के दौरान पकड़ में आता है. ऐसा इसलिए क्योंकि प्री-एक्लेमप्सिया के दो सबसे आम लक्षणों को घर में पहचान पाना आसान नहीं हैं. ये लक्षण हैं:
-उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर)
-पेशाब में प्रोटीन की मौजूदगी
-डॉक्टर इन लक्षणों का पता लगाने के लिए पूरी गर्भावस्था में हर डॉक्टरी चेकअप के दौरान टेस्ट कराएंगी. ये टेस्ट एहतियातन कराए जाते हैं.

हालांकि, प्री-एक्लेमप्सिया के कुछ विशिष्ट संकेत व लक्षण हैं, जिनके बारे में आपको पता होना चाहिए. यदि आपको निम्नांकित कोई भी लक्षण हों, तो अपनी डॉक्टर या मेटरनिटी हॉस्पिटल से तुरंत संपर्क करें:
-तेज सिरदर्द
-दृष्टि से जुड़ी समस्या जैसे धुंधला दिखना या आंखों के आगे कुछ चमकता सा दिखना
-पसलियों के ठीक नीचे तेज दर्द
-मिचली या उल्टी
-बहुत ज्यादा एसिडिटी व सीने में जलन (हार्टबर्न)
-अचानक चेहरे, हाथों या पैरों में बहुत ज्यादा सूजन

प्री-एक्लेमप्सिया हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकता है. हल्का प्री-एक्लेमप्सिया काफी आम है. अगर प्री-एक्लेमप्सिया हल्का हो, तो संभव है कि आपको इसके होने का पता ही न चले. प्रसवपूर्व डॉक्टरी जांच के दौरान डॉक्टर लक्षणों को देखकर इसकी पहचान कर सकती हैं. जल्दी जांच और उपचार से आप और आपके शिशु को स्वस्थ रखने में मदद मिल सकती है. अच्छी बात यह है कि गंभीर प्री-एक्लेमप्सिया काफी कम होता है.

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प्री-एक्लेमप्सिया किसको हो सकता है?
आपको निम्न परिस्थितियों में प्री-एक्लेमप्सिया होने की संभावना रहती है:
-पिछली गर्भावस्था में आपको हाई ब्लड प्रेशर रहा था.
-आपको पहले से गुर्दों का रोग है.
-आपको कोई आॉटोइम्यून स्थिति है, जैसे कि ल्यूपस.
-आपको या तो टाइप 1 या टाइप 2 मधुमेह (डायबिटीज) है.
-गर्भवती होने से पहले आपका रक्तचाप उच्च रहता था.

प्री-एक्लेम्पसिया का उपचार
प्री-एक्लेम्पसिया एक ऐसी समस्या है जिसका उपचार करना जरूरी है. एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार, गर्भावस्था में हाइपरटेंशन गर्भवती और भ्रूण के लिए जानलेवा हो सकता है. नीचे जानिए कि प्री-एक्लेम्पसिया का उपचार कैसे किया जा सकता है –

माइल्ड प्री-एक्लेम्पसिया:
माइल्ड यानी हल्के प्री-एक्लेम्पसिया की स्थिति में प्रसव के लिए रुका जा सकता है और आगे के जोखिम से बचने के लिए डॉक्टर गर्भवती को आराम करने और रक्तचाप कम करने की सलाह दे सकता है. इसके अलावा, महिला को प्लेसेंटा में रक्त संचार बढ़ाने की सलाह भी दी जा सकती है.
-रक्तचाप कम करने के लिए महिला को अपने आहार से नमक की मात्रा कम और पानी की मात्रा ज्यादा करने की सलाह भी दी जा सकती है.
-महिला को निरंतर निगरानी में रखने के लिए अस्पताल में भर्ती भी किया जा सकता है। इस दौरान, गर्भवती को रक्तचाप कम करने के लिए दवाइयां दी जा सकती हैं.
-प्री-एक्लेम्पसिया से सिजेरियन डिलीवरी और पूर्व प्रसव का खतरा बढ़ जाता है. इसे कम करने के लिए महिला को मैग्नीशियम सल्फेट जैसी एंटीकॉन्वल्सिव (Anticonvulsive) दवा दी जा सकती है.

गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया:
-गंभीर प्रीक्लेम्पसिया की स्थिति में गर्भवती महिला को जल्द से जल्द अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा, ताकि उसकी निगरानी ठीक से की जा सके.
-इस दौरान रक्तचाप को नियंत्रित करने और सीजर जैसी जटिलताओं से बचने के लिए नसों के माध्यम से दवाइयां (Intravenous) दी जा सकती हैं.
-भ्रूण के फेफड़ों के विकास को बढ़ाने के लिए स्टेरॉयड इंजेक्शन भी महिला को लगाए जा सकते हैं.
-गंभीर प्री-एक्लेम्पसिया में गर्भवती और भ्रूण का जीवन प्राथमिकता पर होता है. अगर महिला अपनी गर्भावस्था के 34 या उससे ज्यादा सप्ताह पूरे कर चुकी है, तो डॉक्टर जल्द से जल्द प्रसव का सुझाव दे सकते हैं.
-अगर गर्भावस्था 34 सप्ताह से कम की हैं, तो महिला को कोर्टिकोस्टेरोइड (Corticosteroids) लेने की सलाह दी जाती है, ताकि भ्रूण के फेफड़ों के विकास की गति बढ़ सके और जल्द प्रसव किया जा सके.

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